॥ श्री अग्रभागवत महात्म ॥

ॠृषि गण प्रदर्शित

श्री अग्र भागवत ( श्री अग्रोपाख्यानम् ) की कथा, मरण को उद्यत दिग्भ्रांत, अशांत परीक्षितपुत्र महाराजा जनमेजय को, लोकधर्म साधना का मार्ग प्रशस्त करने की अभिप्रेरणा हेतु – भगवान वेद व्यास के प्रधान शिष्य महर्षि जैमिनी जी द्वारा,सुनाई गई। परिणाम स्वरूप – अशांत जनमेजय ने परम शांति अर्जित कर, मानव धर्म धारण कर – लोककीर्ति तथा परम मोक्ष दोनों ही प्राप्त किये । मॉं महालक्ष्मी की कृपा से समन्वित, भगवतस्वरूप इस परमपूज्य ग्रन्थ की ॠृषियों ने महत्ता दर्शाते हुए स्वयं वंदना की है।

ऋषय ऊचु:
महालक्ष्मीवर इव ग्रन्थो मान्येतिहासक: ।
तं कश्चित् पुण्ययोगेन प्राप्नोति पुरुषोत्तम: ॥

ॠृषि गण कहते हैं- महालक्ष्मी के वरदान से समन्वित होने के कारण स्वरूप, श्री अग्रसेन का यह उपाख्यान ( पुरुषार्थ गाथा ) सभी आख्यानों में सम्मानीय, श्रेयप्रदाता, और मंगलकारी है । जिसे कोई पुरुषश्रेष्ठ पुण्यों के योग से प्राप्त करता है ।

अग्राख्यानं भवेद्यत्र तत्र श्री: सवसु: स्थिरा ।
कृत्वाभिषेकमेतस्य तत: पापै: प्रमुच्यते ॥

ॠृषि गणकहते हैं – श्री अग्रसेन का यह आख्यान (पुरुषार्थ गाथा) जहां रहता है, वहां महालक्ष्मी सुस्थिर होकर विराजमान रहती। अर्थात स्थाई निवास करती हैं । इसका विधिवत अभिषेक करने वाले, सभी पापों से विमुक्त हो जाते हैं ।

ग्रंथदर्शन योगोऽयं सर्वलक्ष्मीफलप्रद: ।
दु:खानि चास्य नश्यन्ति सौख्यं सर्वत्र विन्दति ॥

ॠृषि गणों ने कहा- श्री अग्रसेन के इस आख्यान (पुरुषार्थ गाथा) का सौभाग्य से दर्शन प्राप्त होना, महालक्ष्मीके , अर्थ-धर्म-काम मोक्ष सभी फलों का प्रदायक है । इसके दर्शन कर लेने वालों के, सभी दुखों का विनाश हो जाता है, और सर्वत्र सुखादि की प्रतीति होती है ।

दर्शनेनालमस्यात्र ह्यभिषेकेण किं पुन: ।
विलयं यान्ति पापानि हिमवद् भास्करोदये ॥

ॠृषि गणों ने कहा – जिसके दर्शन मात्र से, सभी पापों का इसप्रकार अन्त हो जाता है, जैसे सूर्य के उदित होने से बर्फ पिघल जाती है । फिर जलाभिषेक के महत्व की तो बात ही क्या ? अर्थात अनन्त महात्म है ।

प्रशस्याङ्‌गोपाङ्‌गयुक्त: कल्पवृक्षस्वरूपिणे ।
महासिध्दियुत श्रीमद्‌ग्रोपाख्यान ते नम: ॥

ॠृषिगण कहते हैं – श्री अग्रसेन के आदर्श जीवन चरित्र के,सभी उत्तमोत्तम अंगों तथा उपांगों से युक्त, कल्पवृक्ष के समान , आठों सिद्धियों से संयुक्त,श्री अग्रसेन के इस आख्यान (पुरुषार्थ गाथा) को, नमन करते हुए ,हम बारम्बार प्रणाम करते हैं।
यह शुभकारी आख्यान जगत में सबके लिये कल्याणकारी हो ।

©- रामगोपाल ‘बेदिल’