मनिषियों के मत 4

इस ग्रंथ की अनुपम महिमा को अनेकों ने अनुभूत किया है

— दोर्बलप्रभाकरशर्मा

 


  महालक्ष्मी की कृपा व महाभाग्याशाली ॠषिस्वरुप श्री रामगोपालजी बेदिल की कठोर तपस्या का फल है

“श्रीमद् अग्रभागवतम”

                                                                       

यदक्षरं पदं वाक्यं प्रमाणं प्रेरणं परम्।

ितार्थं अहितार्थानां हानं संस्कृतिरक्षणम्॥

तदक्षरं पदं वाक्यं प्रमाणं प्रेरणं परम्।

     संस्कृतं भूषणं वाचां नमामो देवभाषणम्॥

जिसका एक – एक अक्षर, प्रत्येक पद तथा वाक्य प्रेरणा से परिपूर्ण होता है तथा सम्पूर्ण जगत के लिये कल्याणकारी, अहित का विनाशक व संस्कृति का संरक्षण करने वाला होता है ऐसे शाश्‍वत, प्रमाणिक व श्रेष्ठ प्रेरणा पूर्ण शब्दों पदों व कथनों से युक्त मानव को सुसंस्कृत करने वाली इस देवगाथा को मैं सादर नमन करता हूं।

 

अग्रसेनस्य चरितम् अवाङ्मानसगोचरम्।

पापापहं गुणाधानं पावनं गाङगतोयवत्॥

श्री अग्रसेन जी का यह पावन चरित्र, शब्दातीत तथा मानस के लिये अगोचर (अज्ञेय) है, यह समस्त पापों का नाश करने वाला, दैवी संपदा से युक्त तथा गंगाजल की तरह पावन व पवित्र करने वाला है।

अग्रसेनस्य चरितं सर्वमानव साधनम्।

पठनीय पाठनीयं सुप्रकाश्यात्मशोधनम्॥

श्री अग्रसेन जी का यह चऱित्र श्रेष्ठ मानवधर्म की साधना हेतु उत्तम साधन है, जिसके दिव्य प्रकाश से हर व्यक्ति अपना आत्मशोधन कर, दिव्यता को प्राप्त कर सकता है अत: श्री अग्रसेन का यह पावन चरित्र पठन-पाठन के योग्य है।

अग्रसेनस्य चरितम् भूर्जपत्रोपपादितम्।

रामगोपालसन्द्रष्टं गुरुणा सुप्रसादितम्॥

भुर्जपत्रों पर अंकित (प्राचीनतम) श्री अग्रसेन जी की चरित्र गाथा के दिव्य ज्ञान को, सद्गुरु की महत् कृपा से ॠषिस्वरुप (सन्दृष्टा) श्री रामगोपाल महोदय ने पुन: प्रकट किया है।

बेदिलो रामगोपालः कृपालुगुरुलालितः।

अग्रोपाख्यानसन्द्रष्टा साक्षी लोकहितादरः॥

परम कृपालु गुरु की अनन्त कृपा से पल्लवित ‘बेदिल‘ उपनाम से विख्यात श्री रामगोपाल महोदय (महर्षि जैमिनी विरचित जयभारत ग्रन्थ के इस अंश) अग्रोपाख्यानम ग्रन्थ के दिव्य ज्ञान के साक्षी है तथा आदर पूर्वक लोकहित के लिये प्रकटकर्ता हैं।

श्रध्दालवः समायाताः अग्रसेनानुयायिनः।

भवन्तश्च भवत्यश्च वन्द्या मे भूरिदायिनाः॥

श्री अग्रसेन के आदर्शों का अनुसरण करने वालों के लिये, यह दिव्य चरित्र सदा ही वन्दनीय रहा है। वन्दनीय है और वन्दनीय रहेगा। इस दिव्य प्रकाश को जगत में फैलाने वालों की भी मैं वन्दना करता हूं।

— दोर्बलप्रभाकरशर्मा शतावधानी
अध्यक्ष, पूर्व आन्ध्र प्रदेश
राष्ट्रीयकार्यकारिणी सदस्य, संस्कृत भारती