संस्कृत भारती 1

संस्कृत भारती द्वारा आयोजित राष्ट्रीय महासम्मेलन के श्री अग्रभागवत परिचर्चा सत्र को संबोधित करते हुए श्री बेदिल ने कहा कि- पांच हजार वर्षों बाद भी श्री अग्रसेन के आदर्श मानव धर्म के श्रेष्ठ मूल्यों के रूप में सर्वमान्य इसलिये हैं क्योंकि मानवता के पोषक श्री अग्रसेन चारों वर्णों में समान रूप में जिये, चारों वर्णों में प्रशंसित रहे, चारों ही वर्णों के आदर्श रहे.

धर्मज्ञ होना ही ब्राह्मणत्व है, श्री अग्रसेन ने द्वापर व कलि के संधिकाल में जब लोकधर्म विनिष्ट हो रहा था, तबगुरु गर्ग के निर्देशानुसार देश देश में धर्म की पुर्नस्थापना के लिये विश्व उपदेष्टा स्वरूप जनजागरण का कार्य किया. और वे संतों, ऋृषियों व ब्राह्मणों से प्रशंसित हुए.

भगवान श्री राम के क्षत्रिय कुल में जन्म लिया तथा महाभारत युद्ध में धर्म के पक्ष में वीरता पूर्ण शौर्य का प्रदर्शन कर धर्मराज युधिष्ठिर व भगवान श्री कृष्ण द्वारा प्रशंसित हुए.

अहिंसा को धारणेय मानव धर्म के रूप में प्रतिस्थापित करने वाले श्री अग्रसेन ने यज्ञबली का विरोध करते हुए अपने वर्ण का परित्याग कर प्रजापालन के गुणों से युक्त वैश्य वर्ण अपना लिया. विश्व में त्याग का ऐसा उदाहरण अन्यत्रऔर कहां है ? वैश्य वर्ण के मसीहा श्री अग्रसेन द्वारा स्थापित परंपराएं समस्त वैश्य कुलों में आज तक विद्यमान हैं.

इसी प्रकार श्री अग्रसेन का समर्पित सेवाभाव तथा समता की व्यवस्था उनका दीन-हीन तथा वंचितों के प्रति अगाध प्रेम ही तो था. वंचको के उन्नयन के लिये किये गये प्रयासों व व्यवस्था श्री अग्रसेन जी के चर्तुवर्णी स्वरूप को प्रतिपादित करते है.

मानव धर्म के पथप्रदर्शक श्री अग्रसेन सभी वर्णों द्वारा प्रशंसित व उनका सम्पूर्ण जीवन राष्ट्र तथा मानवता के लिये मार्गदर्शक है.


 

श्री अग्रसेन चारों वर्णों में समान रूप में जिये, चारों वर्णों में प्रशंसित रहे,चारों ही वर्णों के आदर्श रहे.

—श्री बेदिलजी