मनिषियों के मत 1

महामानव अग्रसेन की प्रासंगिक व प्रामाणिक जीवन गाथा

—डॉ. हरीश नवल


 

आदरणीय बेदिल जी ईश के शीश पर विराजित चंदन के तिलक की तरह

विश्व- विखयात हिन्दी के मूर्धन्य विद्वान डॉ. हरीश नवल ने समारोह में जहां श्री अग्रभागवत के एक एक पहलुओं का गंभीरता से विश्लेषण किया वहीं उन्होने श्री अग्रभागवत को आधुनिक युग की आवश्यकता के अनुरूप बताते हुए कहा किश्री अग्रसेन के जीवन मूल्य शाश्वत हैं जो मर नहीं सकते, जो झुठलाये नहीं जा सकते. शायद मार्क भी कम्युन की वैसी कल्पना भी नहीं कर पाए, जो अग्रसेन ने समता के सिद्धांत के रूप में अपने राज्य में लागू की थी. वे सहकारिता आंदोलन के जनक हैं. बात चाहे अर्थ तंत्र की हो चाहे गणतंत्र की, अग्रसेन ने केवल कल्पना नहीं की, जीवन कर्म बनाया हे उन्हे, आदर्श स्थापित किये हैं. नीति, नय, धर्म, मर्यादायें, मान्यताएं जो कुछ भी मानवता के हित में उन्हे नहीं रुचा, उसके खिलाफ क्रांतिकारी बन विद्रोह तक करने में वे कहीं हिचके नहीं.
सारे लोक का जिसमें हित संनिहित हो ऐसा मादर्शक जीवन चरित्र वर्तमान युग की आवश्यकता थी. जो आज आदरणीय बेदिल जी ने पूरी की. यह दुष्कर कार्य कोई बेदिल ही कर सकता था. अग्रसेन का सम्पूर्ण जीवन संघर्षों की अनूठी कहानी है, संघर्ष के क्षणों में हमारे आराध्य राम और कृष्ण के भी कुछ निर्णय मान्य नहीं किये जा सकते. हम राम को क्षमा नहीं कर सकते जिस अवस्था में उन्होने सीता को छोड़ा. कृष्ण के कई अकर्म नीति के नाम पर जो हुए, स्वीकार नहीं किये जा सकते, किन्तु अग्रसेन के जीवन में एक भी ऐसा प्रसंग नहीं है, कि जिसे लिये उन्हे कटघरे में खडा किया जा सके.
आज ऐसे आदर्श युगदृष्टा महामानव अग्रसेन की प्रासंगिक व प्रामाणिक जीवन गाथा का लोकार्पण करते हुए हम अपने को गौरवान्वित महसूस कर रहे है. आदरणीय बेदिल जी का सकल मानव समाज उसी तरह ऋणी रहेगा जिस तरह तुलसी का.

सर्वथा अनुपलब्ध अलभ्य ग्रंथ का देवभाषा संस्कृत एवं लोकभाषा हिंदी में प्रमाणिक, शोधजन्य, सरल, सुबोध, प्रतिपादन प्रशंसनीय ही नही अपितु अभिनंदनीय भी है। श्री बेदिल जी के श्रम, साधना, त्याग व समर्पण ने विश्वकल्याण का अग्रपथ दर्शाया है। श्री बेदिलजी ईश के शीश पर विराजित चंदन के तिलक की तरह हैं।

– डा. हरीश नवल
ज्ञानपीठ अवार्डी