अंतरराष्ट्रीय संस्कृत सम्मेलन 3
इस अवसर पर सभी की जिज्ञासा को शांत करने उन्होने बताया कि अतीव वैदिक संपदा से सम्पन्न हमारे देश के अनेकों ग्रंथ विदेशी शाशकों के काल में नष्ट हुए. हमारे ऋृषि मुनि त्रिकालज्ञ हैं. वे जानते थे इसीलिये उनने फलों फूलों से ऐसी अदृश्य लेखन की विधि अपनाई होगी.
डॉ. पुजारी ने श्री अग्रसेन की अर्थ नीति, राज नीति, धर्म नीति, उनका समाज विज्ञान, दण्ड नीति, प्रबंधन प्रणाली, समता की अनोखी व्यवस्था का विवेचनात्मक विश्लेषण किया.
श्री गोविन्द जी पोद्दार ने चर्चा-सत्र का संचालन का संचालन करते हुए गौरवशाली विदर्भ की महत्ता बतलाते हुए कहा कि श्री अग्रसेन जी की माता विदर्भकन्या थी और सौभाग्य से यह अमूल्य धरोहर भी श्री बेदिल जी के पास विदर्भ में ही है.
श्री पोद्दार ने ग्रंथ के उपलब्ध होने से लेकर अब तक हुए समस्त प्रयासों की संक्षिप्त जानकारी देते हुए विद्वानों से इस महत कार्य में जुटने का आव्हान किया.