श्री पीठ
(प्राकृतिक उर्जामयी विश्व)
श्री अग्रसेन ने अपने राज्य के मध्य में श्रीपीठ की स्थापना की थी, जहां वेदों के पारंगत विशिष्ट विद्वानों द्वारा दिनरात महालक्ष्मी की आराधना की जाती थी।
पुरं मध्ये वर्धमानं श्रीपीठे रत्नसंसकृते|
आराध्यते ह्योरात्रं व्दिजाः वेदविदां वराः॥
वैश्विक संतुलन हेतु अग्रविश्व ट्रस्ट द्वारा श्री अग्रसेन जी द्वारा संस्थापित श्रीपीठ के अनुरुप का श्रीपीठ के निर्माण का संकल्प तथा श्रीपीठ में सर्व सिद्धी युत स्थाप्य उर्जामयी श्रीयंत्र की अद्भुत भौमितिक संरचना (जो कि कालांतर में श्री आद्य शंकराचार्य जी द्वारा पुनः की गई थी), आज इस युग की आवश्कता है, जिसकी प्राकृतिक उर्जा निश्चित ही जगत की तारनहार होगी।
इस श्रीयंत्र में जहां एकओर पौराणिक भारत के अत्यंत विकसित विज्ञान के साक्षात दर्शन होते हैं, वहीं भारतीय शिल्पकला की महत्ता भी मुखरित होती है। साथ ही इसके मांत्रिक प्रयोग से भारतीय आध्यात्म विद्या की कल्याणकारी उर्जामयी कृपा प्राप्त होती है। धार्मिक प्रक्रियाओं के वैज्ञानिक प्रारुप वाला यह प्रयोग, निश्चित ही अपने आप में अनूठा, अद्भुत व आनन्द की अनुभूति प्रदान करने वाला है।
हमारे पुराणों में अंकित गूढ रहस्यमयी विद्याओं को वैज्ञानिक प्रयोगों के साथ जन जन तक पहुंचाने व उसके आध्यात्मिक लाभ से वंचित जगत के जीवन को आनन्दमय बनाने के अग्रविश्व ट्रस्ट के महत् उपक्रम का यह एक प्रधान अंग है।