॥ अभिमत ॥
महाराज जनमेजय
श्री अग्र भागवत ( श्री अग्रोपाख्यानम् ) की कथा, मरण को उद्यत दिग्भ्रांत, अशांत परीक्षितपुत्र महाराजा जनमेजय को, लोकधर्म साधना का मार्ग प्रशस्त करने की अभिप्रेरणा हेतु – भगवान वेद व्यास के प्रधान शिष्य महर्षि जैमिनी जी द्वारा,सुनाई गई। परिणाम स्वरूप – अशांत जनमेजय ने परम शांति अर्जित कर, मानव धर्म धारण कर – लोककीर्ति तथा परम मोक्ष दोनों ही प्राप्त किये ।
मॉं महालक्ष्मी की कृपा से समन्वित, भगवतस्वरूप इस परमपूज्य ग्रन्थ की ने महत्ता दर्शाते हुए महाराजा जनमेजय जी श्री अग्रसेन जी के इस पावन चरित्र की वंदना करते हुए कहते हैं।
जनमेजय उवाच ।
एषा धन्यो हि धन्यानां धन्यकृद् धन्यपुङ्गव: ।
नरेषु तु सनागेषु नास्ति धन्यतरोऽग्रत: ॥
महाप्राज्ञ जनमेजय ने कहा – ऐसे श्री अग्रसेन धन्य हैं ! धन्य पुरुषों द्वारा भी इन्हें धन्य ही कहा गया है। ये मानव श्रेष्ठ निश्चय ही धन्य हैं। महर्षे ! आपके द्वारा, महाराजा अग्रसेन के उज्ज्वल निर्मल पावन तथा लोक हितकारी चरित्र को सुनकर, मेरा यह स्पष्ट मत है , कि मानवों तथा नागों में श्री अग्रसेन जी से बढ़कर और कोई दूसरा धन्य (श्रेष्ठ) पुरुष नहीं है।
हृदि मे जायते सौख्यं परमं च तवाननात् ।
शृण्वानस्याग्रसेनस्य पिबतश्च कथामृतम् ॥
महर्षे ! आपके श्रीमुख से, श्री अग्रसेन जी के श्रेष्ठ चरित्र को सुनकर इस सुन्दर कथा रुपी अमृत का कर्णपुटों द्वारा पान करके, मेरे हृदय में परम आनन्द उत्पन्न हो रहा है ।
एक एव क्षीरनिधिरिह सन्तापहोच्यते ।
किं पुनश्चरन्द्रकिरणैर्मलयानिलसंयुतै: ॥
सुशीलत्वं स गमित: सुमनोभिरलंकृत: ।
चरितं ह्यग्रसेनस्य श्रुत्वाऽहं ते मुने कृती ॥
हे महर्षे ! अकेला क्षीरसागर ही सदा संतापनाशक कहा जाता है , यदि वह मलयाचल की सुगंधित वायु से संयुक्त हो जाए और उसके अमृत जल को चंद्रमा की किरणें अत्यन्त शीतल कर दें और वह पुष्पों से अलंत हो जाए तो फिर उस क्षीरसागर के स्वरुप का क्या कहना ? हे महामते ! उसी तरह महाराजा अग्रसेन का मनोहारी (गहन, रसमय, मार्गदर्शक) चरित्र , आपके श्रीमुख से कहे जाने से तो निश्चय ही अद्वितीय (लोककल्याणकारी) शीतलता से युक्त हो गया ।
श्रवणादेव लप्स्यन्ते प्रतिष्ठाज्ञानसम्पद: ।
अग्रसेनस्य माहात्म्यान्नाधर्मस्तान् भजिष्यति ॥
श्री अग्रसेन के इस पावन चरित्र को सुनने मात्र से, अनुपम वंश प्रतिष्ठा को प्राप्त किया जा सकता है । जो श्री अग्रसेन के इस महात्म को मन में धारण करेंगे, उनके जीवन में, अधर्म का प्रवेश नहीं हो सकेगा ।
जनमेजय जी के द्वारा श्री अग्रसेन जी की इस पावन कथा का श्रवण, चिंतन, व मनन कर, अकारण ही ,जिनके मन में संदेह उत्पन्न होने से, जो अनर्थ की ओर अग्रसित हो गए थे, उन महाराजा जनमेजय को महर्षि जैमिनी द्वारा इस प्रकार समझाने पर, उन्होने श्री अग्रसेन जी के समान ही मानव धर्म के हृष्ट पुष्ट आचरण से परम शांति धारण की । जो मनुष्य इस स्तोत्र का भक्ति पूर्ण श्रवण करता है, मॉं महालक्ष्मी की महत् पा से ‘श्री अग्रसेन जी’ की भांति ही उसकी समस्त कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
एतदाश्चर्यमाख्यानं मया प्रोक्तं सुखावहम् ।
मानवं धर्ममास्थाय कथा पुण्या प्रबोधिता ॥
महर्षि जैमिनी कहते हैं – मेरे मत से, यह आश्चर्य जनक आख्यान, सुख को प्रदान करने वाला है । मानव धर्म की यह पवित्र दिव्य एवं मंगलकारी कथा है ।
जगत की जीवन नौका को विपत्ति के भंवर में डूबने से बचाने के लिये महामानव श्री अग्रसेन का उज्ज्वल चरित्र ‘आलोक स्तंभ’ के रुप में विद्यमान है।
यह शुभकारी आख्यान जगत में सबके लिये कल्याणकारी हो ।
©- रामगोपाल ‘बेदिल’