संस्कृत भारती 4

इस ग्रंथ की अनुपम महिमा को अनेकों ने अनुभूत किया है

— दोर्बलप्रभाकरशर्मा


 

महालक्ष्मी की कृपा व महाभाग्याशाली श्री रामगोपालजी

बेदिल की कठोर तपस्या का फल है

– “श्रीमद् अग्रभागवतम्”

श्री बेदिल के उपनाम से विख्यात श्रीमान रामगोपाल जी को भगवती महालक्ष्मी ने स्वप्न में दर्शन देकर ब्रम्हकंण्ड पहुचने को प्रेरित किया। निर्देशानुसार वे समित्र वहां पहुंचे। अरुणाचल प्रदेश स्थित ब्रम्हसर के निकट एक अलौकिक सिद्धपुरुष ने भुर्जपत्र पर अंकित महर्षि जैमिनी विरचित ‘जयभारत’ ग्रंथ के भविष्यपर्व के अन्तर्गत यह अग्रोपाख्यानम् नामक अदभुत अलौकिक ग्रंथ उन्हे प्रदान किया।

श्री रामगोपाल जी ने जब सिद्धपुरुष द्वारा प्रदत्त इस ग्रंथ को खेलकर देखा तो उसमें सभी पत्र कोरे प्रतीत होते। निरक्षर भुर्जपत्रों के इस ग्रंथ का क्या किया जाए? यह उन्हे कुछ भी समझ नहीं आता था। अन्तोगत्वा इस ॠषि-प्रसाद की उपयोगिता से अनभिज्ञ होने के कारण श्री बेदिल निराश हो भाव विहल हो उठे।

देवकृपा से उन के आनन्दाश्रु के स्वेदकण ग्रंथ के एक पत्र पर जा पड़े जिससे उन्हे कुछ अक्षर दिखाई दिये। प्राप्त प्रेरणा से अभिभूत हो उनने पत्र पर थोड़ा सा जल सिंचित किया और उस पर अंकित अक्षर, वाक्य, श्लोक स्पष्ट दिखने लगे।

श्री बेदिल महोदय ने शनै: शनै: एक एक पत्र जल में डुबा डुबाकर उभरने वाले उन अक्षरों को यथाक्रम लिखा, उन्हे श्लोकों के स्वरुप में आबद्ध किया। लगभग उन्नीस वर्षों की कठोर तपस्या का फल है – श्री अग्रसेन महाराज के आदर्श चरित्र की यह अनुपम गाथा “श्रीमद् अग्रभागवतम्”।

जल आद्रता से रहित होने पर इस अद्भुत ग्रंथ के अक्षर नहीं दिखाई देते और अधिक आद्रता ग्रंथ सह नहीं सकता। साथ ही ग्रंथ के छिन्न भिन्न हो जाने का भय भी था। तथापि इन महानुभाव के द्वारा न जाने इस ग्रंथ को कैसे अभिषिक्त कर, किस प्रकार अक्षरों का ज्ञान कर, कैसे यह महत्वपूर्ण कार्य सम्पन्न किया गया।

तथापि इस ग्रंथ के अभिषेक करने पर अभिषिक्त पावन जल अमृत जल की तरह हो जाता है जो कि विभिन्न आपदाओं व असाध्य रोगों से पीड़ितों की व्याधि निवारण हेतु अमृतसंजिवनी है। इस ग्रंथ इस अनुपम महिमा को अनेकों ने अनुभूत किया है।

महाभाग्याशाली श्री रामगोपालजी बेदिल ने ॠषि प्रदत्त मूलग्रंथ का जिस प्रकार वाचन किया, उसी प्रकार उसका लेखन भी किया है।

महामहिमाशाली इस ग्रंथ में प्रेरणासाद अनेको कथांए व सुक्तियां विद्यमान हैं। जो किसी एक वर्ग के लिये ही नहीं अपितु सभी व्यक्तियों के लिये जीवनोपयोगी है। अखिल भारत व सकल विश्व के लिये यह ग्रंथ निश्चित ही परम उपकारी होगा।

जैसे भुर्जपत्रमयी यह मूलग्रंथ श्री: अमृता महालक्ष्मी सहित माता सरस्वती की अनन्त कृपा के प्रसाद स्वरुप प्राप्त हुआ है, वैसे ही यह जगत कल्याणकारी होगा। ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है।

— दोर्बलप्रभाकरशर्मा शतावधानी
अध्यक्ष, पूर्व आन्ध्र प्रदेश
राष्ट्रीयकार्यकारिणी सदस्य, संस्कृत भारती