संस्कृत भारती 3

श्री अग्रसेन के दिव्य- चरित्र का, आनन्दमय जीवनविषयक यह अद्भुत ज्ञान

                          

लोक कल्याण हेतु यह आदर्श दुर्लभ चरित्र ग्रंथ,

जगत के दृष्टि पटल पर लाने वाले,

इस महत्कार्य में निरंतर अग्रसरअनुज श्

री रामगोपाल जी बेदिल का शत शत अभिनन्दन।

—डॉं रामकृष्ण पुजारीअध्यक्ष, संस्कृत भारती, विदर्भ प्रान्त:

 


आज संस्कारहीन हो रहे समाज में, श्रद्धा, उद्योगशीलता, निर्भयता, सात्विकता, ज्ञान, दान, यज्ञ, तप, दम, स्वाध्याय, अहिंसा, शांति, दयादि दैवीगुण-सम्पदा युक्त, जीवनमूल्यों की पुनर्प्रतिस्थापना अत्यन्त आवश्यक है।

तद्हेतु श्री अग्रसेन महाराज के इस जीवन चरित्र का स्वाध्याय ही एकमेव उत्तम उपायहै और यही समय की नितांत आवश्यकता भी है।

जिसप्रकार जब मानव शरीर व्याधिग्रस्त हो जाता है तब स्वास्थ के रक्षण तथा संवर्धन हेतु वैद्यगण चिकित्सा शास्त्र के अनुसार “अ”, “ब”, “क”, “ड” आदि इन जीवनसत्वों की आवश्यकता होती है। चिकित्सक तद्हेतु आवश्यक उपाय योजना करते है। उसीप्रकार जब समाज, उपरोक्त दुर्गुणों में लिप्त हो व्याधिग्रस्त हो जाता है, उस समय निर्भयता, उद्योग, ज्ञान, दान, तप, यज्ञादि सात्विक ओजगुण युक्त जीवनतत्वों की प्रतिष्ठा करना अत्यन्त आवश्यक हो जाता है।

इन सद्गुणों की प्रतिस्थापना हेतु श्री अग्रसेन महाराज के इस पावन चरित्र का पठन व अभ्यास अत्यन्त आवश्यक है। लोक कल्याण हेतु इस प्रकार का आदर्श दुर्लभ चरित्र ग्रंथ, जगत के दृष्टि पटल पर लाने वाले, इस महत्कार्य में निरंतर अग्रसर अनुज श्री रामगोपाल जी बेदिल का शत शत अभिनन्दन।